( तर्ज - कायाका पिंजरा डोले ० )
काहे नर ! विषय भ्रमाया ?
सब तुच्छ समझ यह माया ॥ टेक ॥
इस मायाने सुन भाई !
सारे जनको बिगराई ।
पड गई किचड़में काया ,
सब तुच्छ ० ॥ १ ॥
कोइ बचा न इस मायासे ,
सब फोल किये कायासे ।
तन - मन पर रोग लगाया ,
सब तुच्छ ० ।। २ ।।
नारद ब्रह्मा भुल पाये ,
शंकर उसमें लपटाये ।
क्या औरनकी है छाया ?
सब तुच्छ ० | ॥३ ॥
कहे तुकड्या सद्गुरु ध्याओ ,
सत् - संगतमें चित लाओ ।
जब बिचार अपना पाया ,
सब तुच्छ ० ॥ ४ ॥
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